Monday, December 28, 2009

नन्हे हांथों को जिंदगी का बोझ उठाते देखा कल...

जो बचपन होता है बेफिक्री से जीने के लिए,
उस बचपन को जिंदगी की जंग लड़ते देखा कल.

जिन आँखों मे होती है चमक सुनहरे कल की,
उन आँखों मे सपनो की रोटी पकाने की चाह्त को देखा कल.

जिन चेहरों पे होनी चाहिए मासूमियत,
उन चेहरो पे उम्र की लकीरों को देखा कल.

जिस उम्र मे सुनते है सब परीओं की कहानी,
उस उमर को जिंदगी की दास्तान बुनते देखा कल.

पेट की भूख होती है सच मे जालिम,
इस बात को सच होते देखा कल.

नन्हे हाथों को जिंदगी का बोझ उठाते देखा कल ....


( अमीरी -गरीबी तो हम बड़ों की बनाई चीज़ है फिर इसका मूल्य इन बच्चों को क्यो चुकाना पड़ता है ??????????? )

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